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Sunday, July 7, 2019

सियाह रातिक भोर

लाल कक्काकें दलान पर
लोकक उत्साह असमान पर
देखि विलक्षण दृश्य
हम पुछलियैन्ह कक्का यौ
ई मुरदा सभ अनायास कोना जागि गेल?
ओ कहलनि...
आब नहि जागत तँ जागत कहिया
बाँचल खुचल लूटि लेतनि तहिया ?
विदेह राजा जनकक सन्तान आखिर
रहत किएक उपेक्षित आ बहिया ?

कक्का फेर बाजि उठलाह
हौ ओना देखल जाए तँ जण जागरणकेँ
तँ पहिनो भेलैए खूब प्रयास
मुदा अधखिच्चू मनसँ
तेँ परिणाम रहल अछि सुन्ना आ
होयत रहल अछि सदैव उपहास
उधिआयत दूध जकाँ झट दS उठि
आ बिना हवा वसातकें
धम्मसँ जमीन पर खसि पड़ैत अछि

कक्का फेर व्यथित भS बाजि उठलाह
जेना भुसकॉल धियापुता नहि देखैत छह
जोर जोर सँ रट्टा मारि मोन पाड़ैत रहतS
जे *केराक पात हरियर होयत छैक*
हौ ओ तँ हरियर होयते छैक
मुदा ओकर माथा भोथगर छैक
जेना बुद्धिके माल जाल चरि गेल होइन्ह
आ खाली माथमे भूसा भरल होइन्ह

तहिना हमर विदेह राजाक वीर सपुतक कथा
बुद्धि हेराएल सन डरल डेराएल सन
अपनहि अथा माइ कथाक व्यथामे ओझराएल सन
हौ समर्पणकें घनघोर अभाव
आ ताहि पर अगिलेसु स्वभाव
देखहक तँ..
एनामे कोना जनजागृति हेतैक ?
जखन छथिए नहि कियो एकगोट
माँ मिथिलाक सपूत
जनिकर होइन्ह समाज पर कनिओ नीक प्रभाव

पहिने तँ मैथिलकें छुच्छे अहंकार छोड़ि
समेवित स्वर सँग जनमनकें झकझोरि
अशांत मोनमे सुनगैत छाउरकें
क्रांतिगीतक हवा सँ कोरि
धधका देबाक चाहि आ
संकल्प सँग बना देबाक चाहि
क्रांतिकारी सपुत सभक महागठजोड़
तखने होयत कारि सियाह रातिक भोर !

जयमिथिला || जयमैथिली  || जयजय मिथिलाक्षर

रामबाबू सिंह मिथिला

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