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Saturday, June 29, 2019

||√|| सत्त आ सुप्पत गप्प ||√||

जहियासँ सुप्पत आ सार्थक गप्प बजबाक रोग लागल तहियासँ अनेरे अघोरी सभक आँखिक कीड़ा बनि गेलहुँ। अघोरी अहि द्वारे कहलहुँ की हुनका सभमे समाजिक वा सरोकारी काजक कोनो दृष्टि नहि छनि ओ सब केवल अप्पन स्वार्थ सिद्धि लेल अफसियांत देखल जाएत छथि। आ जखनहि किछु अँखिगर गप्प कए झाँपल चीज उघार केलियैन्ह की छ'क दए लागि जाएत छनि। आ फेर ओ सब अपन पोसुआ कुकुड़ बिलायकेँ आदेश दए झाऊँ झाऊँ करा सार्थक विषय वस्तुक धाराकेँ एनकेन प्रकारेण अपना दिसि मोड़बाक कुप्रयास करय लागैत छथि।

सत्तसँ परिचित रहितहुँ ओ उठाओल गेल उचित सबालकें अनुचित मानि हमरे विपथगामी सिद्ध करबाक कुचेष्टा करैत छथि। भरिसक ओ हमरा गलत बुझैत होय मुदा हमरा नजरिमे ओ गलत नहि छथि। समय बलवान होयत छै, नीक आ बेजाए ओ स्वयं सिद्ध भए जाएत। सोझामे होयत देखि अनीति अकर्मण्यता अक्षमता अनुशाशनहीनता पर हम बहीर अकान जकाँ चुप कोना रहि जाउ। संस्था आ संगठनक सृजन समाजिक उत्थान लेल कएल जाएत अछि तखन ओकर जिम्मेबारी समस्त समाजकेँ सेहो होयत छैक। नीक आ बेजाए पर ओ साधिकार सबाल उठा सकैए। संस्था मतलब कोनो वा किनको प्रोपराइटरशिप कम्पनी नहि जे अपना महींसकेँ कुरहरिसँ नाथत आ लोक नाथ' देतनि।

अजगुत लगैए जखन कोनो संस्थाक अनियमितता पर सबाल उठैत अछि तँ श्रद्धा विसवास उमेर नव पुरानक लटका झटका दए सबाल पर उनटा सबाल दागि सबालकें श्राद्ध करबाक कुप्रयास करैत छथि।  मुदा सुनगैत सबाल तँ सुनगैत सुनगैत चिनगी आ फेर पजरि कS धधरा रूप अख्तियार करबे करत। कियो चाहे कतबो ओकरा झाँपन तोपन करबाक प्रयास करबै मुदा अहि पर नियंत्रित करब असंभव रहत।

खैर दोसरकेँ मनोभाव हमरा प्रति अनुकूल हो वा प्रतिकूल हमरा नहि फरक पड़ैए। किएक तँ हम जनैत छी जँ कोनो सार्थक आ नीक काज लेल हम किनको लेल खराप आ किनको लेल नीक भए सकैत छी।मुदा हमरा लेल संतोषजनक गप्प जे वास्तविकता छै, ओ सभक सोझा अबैए। स्वामी विवेकानंद जीक एकटा बात मन पड़ैत अछि " सभटा नीक बातकेँ पहिने मजाक बनैत अछि आ फेर ओकर विरोध कएल जाएत अछि आ तकर बाद ओकरा स्विकारल जाएत अछि। तेँ भरोसा अछि सत्यकेँ विजयी होयत एकदिन अवश्य देखब ताहि मंगलकामनाक साथ सब गोटेंकेँ हमर प्रणाम।
प्रतिक्रियाक प्रतीक्षारत।
जयमिथिला || जयमैथिली जयजय || जयजय मिथिलाक्षर ||

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