जनसाधरण में सुर आ असुर के विषय में बड़ पैघ भ्रांत धारणा जड़ि धेने अछि। असुर के विषय में कल्पना छैक कि कारि मुँह, नमहर दाँत, पशु जेकाँ माथ में सींग आदि आदि। देवता के विषय में गौरवपूर्ण, आनंदधाम, स्वर्ग में निवास, आउर भक्त के लेल सदिखन ततपरता।ई वर्णन अलंकारिक अछि। एहन लोकक परिकल्पना मात्र अछि, प्राचीनकाल सँ एखन धरि एहन लोकक अस्तित्व नहि त अंतरिक्ष आ नै पृथ्वी लोक पर देखल गेल अछि।
मनुखक आंतरिक व्यवस्था के आधार पर ई देव दानव केर चित्रण अलंकारिक रुपे कएल गेल अछि। कारि मुँह अर्थात कलंक केर टिका, अपयश, निन्दा सँ आच्छादित घृणित जीवन। नमहर दाँत अर्थात बेसी खए बाला, बेसी भोगक दुष्प्रवृत्ति। सींग अर्थात दोसर के सँग दुष्ट जेकाँ वर्ताव, बिना कोनो कारण तकलीफ देबय के आदत। एहन दुर्गुण जे मनुख में होय ओकरा असुर कहि सकैए छी भले देख में गौरवर्ण, रूपवाने किये नै होय?
तहिना जाहि में उदारता, संयम,परमार्थ, सेवाभाव सँ ओतप्रोत होथि, हुनका देवक संज्ञा देल जा सकैछ। देव सदैव पुजल जएत अछि, हुनकर यश के गुणगान कएल जएत अछि, हुनकर सेवापूर्ण कर्तृत्त्व सँ असंख्य प्राणी के शोक सन्ताप में कमी होयत अछि।
व्यक्तिगत जीवन में लोक कतेक नीरस, स्वार्थी, विश्वासघाती आउर निर्ल्लज अछि एकर परिचय बाहर सँ नहि भेटत, मुदा हुनकर दाम्पत्य जीवन, पारिवारिक सौहार्द आ सम्बंधित व्यक्ति के अनुभूतिक जानकारी लेल जाए तखन एहन तथाकथित सफेदपोशक कारि करतूत सोझा अबैत अछि। हिनका दोसर भाषा में नर पिशांच नै त कि कहि सकैए छी?
व्यक्ति जा धरि अपन संकीर्ण स्वार्थ में नाली के कीड़ा मकोड़ा जेकाँ बिलबिलायत/कुलबुलायत रहताह ता धरि उ दिव्य वातावरण व स्थिर सुख शांतिक सँ दूरिये बनल रहतनि। दान धर्मक इतिहास पहुत प्राचीन अछि। संग्रह कएल गेल जमा पूँजी समय समय पर लोकमंगल काज में लगकय संतोष आ सम्मान अर्जन करैत छल।
आउ अपन श्रमदान धनदान, स्वच्छ आ सुन्दर विचारक दान सँ मैथिल मिथिला के अभियान के सँग जुड़ि माँ जानकी केर सेना के सहभागी बनि मातृभूमिक आजादीक संघर्ष में गति प्रदान करू। छोट छोट डेग उठेला सँ एकदिन निर्णायक परिणाम अवश्य हएत लेकिन आन्दोलन लेल एकजुट प्रयास पहिल प्राथमिकता हेबाक चाहि।
"असगरे चलय बाला सबसँ तेज गति सँ जएत अछि, मुदा सबहक साथ लक जए बाला बहुत दूर तक जएत अछि"।
सबहक साथ, सबहक विकास।
जय मिथिला जय माँ जानकी।
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