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Wednesday, June 1, 2016

दादरी: फोरेंसिक जाँच रिपोर्ट क्या समय के साथ बदलता रहता है? 8 महीने की सघन शोध के बाद मथुरा लैब की रिपोर्ट सबसे अलग।

आजकल इस देश में अजीबो गरीब बात हो रही है जो शायद अब बहुत ज्यादा होने लगी है। अब जिस माँस के टुकड़े को फोरेंसिक जाँच की एक लैब ने 8 महीने पहले मटन बताया था, दूसरी लैब उसे बीफ बता रही है। दोनों लैब सरकार की है। अब दादरी के नाम पर एक बार फिर होने बाले तमाशे को देखिये। कमाल की बात है कि यूपी चुनाव आते ही दूसरे लैब का रिपोर्ट आ गई।

विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि 8 सेकंड नही लगते आजकल मानव शरीर की जाँच रिपोर्ट आ जाती है। 8 मिनट में दिमाग की हर नस का हिसाब मिल जाता है। किसी फोरेंसिक जाँच के लिए भी 8 दिन बहुत ज्यादा है? और एक हमारे लैब है जो 8 महीने से माँस के टुकड़े को लेकर माथापच्ची कर रही है। कभी कहते है बकरे का माँस है कभी कहते है ये बीफ है, कोई कहता है भेंड़ है? पता नही ये कैसी फोरेंसिक लैब है जो मटन और बीफ पर ऐसे बंटी है जैसे देश के लोग? एक लैब ने कहा था कि अख़लाक़ के फ्रिज में मटन था अब 8 महीने बाद मथुरा के लैब कह रहा है ना जी वो तो बीफ था?

आपको याद होगा सितम्बर 2015 में उत्तर प्रदेस के दादरी में बीफ रखने और खाने के आरोप में लोगो की भीड़ ने अख़लाक़ के घर पर हमला कर दिया था। ईट पत्थडों से कुचलकर 50 साल के अख़लाक़ की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद सियासत के मैदान सजाकर पक्ष और विपक्ष ने जो हँगामा किया और शासन ने जो जाँच के नाम पर खानापूर्ति की, उसमे सबसे बड़ा सबूत था अख़लाक़ के घर के फ्रीजर से मिला माँस का टुकड़ा।
दादरी की लैब ने जाँच में इसे मटन कहा था, गौतम बुद्ध नगर के पशुपालन विभाग के मुख्य अधिकारी ने भी इसे मटन कहा था, पुलिस के चार्जसीट में भी मटन का ही जिक्र था लेकिन 8 महीने बाद अचानक मथुरा के रासायनिक जाँच में इसे बीफ बताया जा रहा है। इस जाँच के रिपोर्ट ने दादरी का नाम उछालने बालो को एक बार फिर से मौका दे दिया है। इस मामले में पुलिस ने 15 लोगो के खिलाफ नामजद रिपोर्ट लिखी थी। पुलिस को fsl की फाइनल रिपोर्ट का इन्तेजार है।

8 महीने बाद जाँच रिपोर्ट बिलकुल बदल गई है जैसे ATS की जाँच को कूड़े में डालकर NIA की चार्जसीट ने मालेगांव ब्लास्ट की जाँच की तस्वीर ही बदल दी है, ठीक वैसे ही लैब लैब का ये अन्तर दादरी काण्ड का भी रुख बदल कर रख देगा। अख़लाक़ के हत्यारो के लिए तो मौज हो गई है। यूपी चुनाव के समय में ऐसे रिपोर्टो को लोग अपने चश्मे से देखेंगे लेकिन हमलोगो को सावधान रहने की जरूरत है। ये सियासतदानों की सियासी चाल है जो ठीक चुनाव से पहले उछाल दिया जाते है।
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