जीत की दो दमदार शख्सियत की आंकड़े दिन भर आपने देखी है। आइये अब तौल के देखे इनके सियासत का वजन, उनकी सोच का वजन उनके सच का वजन। सफेद सूती साडी में एक औरत अपनी हवाई चप्पल में जब बंगाल की सड़को पर निकलती है तो विरोध की तमाम बोलियाँ खामोश हो जाती है। ये तस्वीरें बता रही है कि दादाओं का सूबा अब दीदी की सल्तनत बन गई है। उधर कोलकत्ता से 2700 किलोमीटर दूर चेन्नई की सारी सड़के पोवेश गार्डन की ओर मुड़ गई थी। अदावतें लाख होती हुई इतिहास में लेकिन तमिलनाडु की जनता का हुक्म है जयललिता की जय बोला जाय। राजनीती के एक से एक धुरंधरों को इस जीत ने खामोस कर दिया है। जीत हार के तमाम आंकड़ोे के बिच दो ओरतो के राजनीती भविष्य का इतना बड़ा फैसला किया कि बड़े से बड़े कदावर नेता उसके नेतृत्व के सामने नतमस्तक हो गया।
ये कोई मामूली बात नही है कि एक औरत बंगाल की लाल धरती के 34 साल की सत्ता को एक झटके में उखाड़ फेक दिया। और जब पाँच साल बाद उसी औरत की अग्नि परीक्षा की बारी आती है जब उसे परास्त करने के लिए विचारधारा को किनारा करके दुश्मन दलों का गठबंधन बनता है। सबसे ताकतबर पार्टी अपनी पूरी ताकत उसको हराने के लिए झोंक देती है तो हवा में उड़ने बालो को हवाई चप्पल बाली ये औरत धूल में मिला देती है।बंगाल की बाघिन ने राजनीत के सारे तय समीकरण को बदल के रख दिया है। राजनीत में जो पहले कभी नही हुआ वो राजनीत में औरतें कर रही है। तमिलनाडु में 30 साल में ऐसा कभी नही हुआ की किसी एक पार्टी को दुबारा सत्ता हासिल हुई हो। डीएमके कोंग्रेस और कम्यूनिस्ट के सारे दिग्गज सोच रहे है कि यह हार है या चमत्कार। राजनीत में कुछ भी तय नही होता, शारदा चिटफण्ड घोटालों में पार्टी नेताओ के नाम आने के बाद ममता वनर्जी की राजनीती को लगभग खत्म मान लिया था और जेल जाने के बाद जयललिता की राजनीती को। लेकिन कल्पनाओं के कबूतर उड़ाने बालो को, नक्षत्रों के चाल बताने बाले ऐसे सारे चालबाज अपने चरित्र की उधरी हुई चादर समेट रहे है आज।
आइये इन दोनों महिलाओं को अब अलग अलग आयाम को देखते है।भद्रजनो का प्रदेश है बंगाल।साढ़े तीन दशक तक बाम दलो के शासन देखने के बाद जनता ने ममता के हाथ अपनी किश्मत सौपी थी। पाँच साल बाद एक बार फिर जनता की कसौटी पर खरा उतारा है जनता ने। तो इसके पीछे कोई विरासत नही है एक भरी पूरी राजनीति है। ये कोई इत्तेफाक नही है कि ममता को बंगाल में चुनौती देने बाला आज कोई नही है? ये एक शख्सियत की लम्बी संघर्ष कथा का नाम है ममता वनर्जी। ये जिद्दी है, एक बार अगर ठान ले तो किसी की नही सुनती है? आप इन्हें अक्खड़ भी कह सकते है, इन्हें अपनी बात मनबानी आती है। एकला चलो पर कितना यकीन करती है इसे इस बात से समझिये जब कोंग्रेस से अलग होने का फैसला किया तो बंगाल में अपनी पार्टी का जनाधार कैसे खड़ा करेगी इसके बारे में सोचा भी नही था? संघर्ष के कई हैरतअंगेज कहानियां बिखड़ी हुई है ममता वनर्जी के जीवन में। 16 अगस्त 1990 की कहानी है, कोलकाता में बाम गठबंधन के विरोध प्रदर्शन के दौरान लेफ्ट के कार्यकर्ताओं ने हमला बोल दिया। ललु आलम नाम के हमलावर ने ममता पर लोहे के रड से वार किया। दो रड उनके सिर पर लगे सिर फट गया तीसरे हमले को ममता दीदी ने किसी तरह अपने हाथ से रोका हाथ की हड्डी टूट गई। जख्म से उबरने में ममता वनर्जी को महीनो लग गए लेकिन अस्पताल से छूटते ही उन्होंने लेफ्ट को फिर से ललकारना शुरू कर दिया।
बंगाल की खुनी राजनीत में लेफ्ट को अकेले एक औरत चुनौती दे रही थी। 7 जनवरी 1993 की यह घटना है, ममता वनर्जी रेप की शिकार एक महिला को लेकर राईटर बिल्डिंग गई थी। उसे इंसाफ दिलाने के लिए तत्कालिक मुख्यमंत्री ज्योती बसु से मिलना चाहती थी। उन्हें बामपंथियों ने राईटर बिल्डिंग से घसीट कर बाहर निकाल दिया था। उस दिन दीदी ने कसम खाई थी कि अब CM बनकर ही राईटर बिल्डिंग की सीढियाँ चढ़ूँगी।
तब लोग हँसे थे लेकिन 18 साल बाद 2011 में जब CM के तौर पर राईटर बिल्डिंग की सीढियाँ चढ़ रही थी तो वही लोग छिपने की जगह ढूंढ रहे थे, अपनी अपनी मुँह छुपाये फिर रहे थे। 1977 की घटना है मुरार जी देशाई बंगाल के दौरे पर थे। एक बेखौफ लड़की उनके कार के बोनट पर चढ़ गई थी।वो लड़की खड़े होकर काले झण्डे लहरा रही थी। वो लड़की ममता वनर्जी थी, ममता रातोरात मशहूर हो गई थी।लेफ्ट के शासन को शिकस्त देने की योजना भी कमाल की थी। वो जानती थी कि लेफ्ट की नीतियाँ गलत नही है उसके नेता उन नीतियों से हट गए है। ऐसे में वो उनके पुराने लकीर को अपना रास्ता बनाया। जनता में अपनी पैठ बनाने के लिए किसान आंदोलन पर अपनी पकर बनाई। बामपंथी सरकार सिंघुर की जमीन पर टाटा के पक्ष में खड़ी हुई तो ममता जमीन वापस लेने पर अड़ गई, उस आंदोलन ने लेफ्ट की अपनी जमीन को ध्वस्त कर दिया था। नन्दीग्राम में जब बामपंथी ने औद्योगिकरण के नाम पर किसान की जमीन लेने का अभियान शुरू किया तो ममता ने किसान मजदूरो में पकड़ मजबूत करने का उन्हें मुद्दा मिल गया।बंगाल में ममता का जादू चला तो तमिलनाडु में जयललिता का।
जादू ही तो है पुरे 30 साल बाद लगातार दूसरी बार किसी पार्टी का सरकार बना है। 2 साल पहले जब भ्र्ष्टाचार के आरोप में जेल गई थी तो मान लिया गया था की वो TMK के लिए सत्ता की राह को आसान बना देगा लेकिन अन्नाद्रमुक की अम्मा ने सारे चुनावी कयासों को झुटलाते हुए जीत का नया आसमान रच दिया है।
जीत की खबर आने के बाद अम्मा ने अपने महल के दरबाजे आम जनता के दर्शन के लिए खोल दिए थे लेकिन रुतबा ऐसा था की कोई शख्स उनके सामने पीठ सीधी करके खड़े नही हो पा रहे थे। दर्शन पाने बाला हर भक्त चरणों में गिरा जा रहा था वो भी 2 फुट की दुरी पर। अम्मा की दुर्लभ दर्शन की ये बिलकुल ही साधारण तस्वीरें है। किसी भी दूसरे प्रदेश के लोगो की समझ से बाहर है? सब जानते है की फ़िल्मी रास्ते के सहारे जयललिता राजनीति में उतरी है और तमिलनाडु के दिग्गज नेता एम जी रामचन्द्रन के विरासत पर काबिज होती चली गई लेकिन एक औरत को राजनीत साधने के लिए किन किन हथकण्डों से काम लेना पड़ा, ये उनके भ्रष्टाचार के किस्सों से कम हैरतअंगेज नही है।
रामचन्द्रन के राजनितिक विरासत को पाने के लिए उन्हें उनकी परिवार से गालियाँ मिली, रामचन्द्रन की शव यात्रा में उनकी पत्नी ने काफी भला बुरा कहा, उसके बाद अन्नाद्रमुक में दो भाग हो गए। जयललिता ने कड़ी मेहनत की और दोनों गुटो को फिर से एक साथ ले आई। 1989 की बात है जयललिता तमिलनाडु में विपक्ष की नेता थी। करूणानिधि की सरकार एक महिला के नेतृत्व को हल्के में ले रही थी। विधानसभा में किसी बात पर जोरदार बहस चल रही थी , जयललिता के बोलने पर DMK के विधयकों ने उनपर हमला बोल दिया।उनके साथ हाथापाई हुई और जब फटी साड़ी में वो बाहर निकली तो पुरे राज्य में भूचाल आ गया। सरकार को तीखी आलोचना हुई। मिडिया ने महाभारत के द्रौपदी की तरह लिया और करूणानिधि की सरकार कौरवों की सरकार बन गई। जयललिता ने प्रण लिया की अब वो CM बनकर ही असेम्बली में लौटेगी।
1991 में ऐसा ही हुआ अम्मा राज का आरम्भ हो गया। जयललिता की जय जयकार से तमिलनाडु में DMK का विकल्प मिल गया था। जयललिता का चुम्बकीय व्यक्तित्व लोगो को खींचता तो था लेकिन सत्ता की शक्ति ने उनकी शख्सियत को बदल दिया था। साड़ी सॉक्स सेंडल गहने के शौक़ीन कीसी आम महिला की तरह भ्रष्टाचार के दलदल में ऐसे धकेल दिया कि अदालते तक हैरान रह गई। और जब 2014 में अदालत ने 100 करोड़ का जुर्माना ठोका और चार साल का सजा सुनाया तो तमिलनाडु के हरेक इलाको में प्रदर्शन और सड़को पर धरना शुरू हो गया। उसके ठीक 2 साल के बाद एक बार फिर से जनता जनार्दन ने उनकी नेतृत्व पर भरोसा किया और तिन दशक के बाद अम्मा के नाम लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का इतिहास दर्ज हो गया।
सच में ये अम्मा का जादू ही है कि भ्रष्टाचार के संगीन आरोप के बाद भी जनता चुन ही लेता है। नेतृत्व चमत्कारी हो तो हर एक दोष माफ़। ममता और जयललिता की जीत एक तरह का है जजबा एक तरह का है। चमत्कार को मेरा नमस्कार।
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