वकील को मालूम नही था की प्रज्ञा ठाकुर का नाम हटा दिया गया। NIA के पूर्व वकील को मालूम नही था कि चार्ज सिट फाइल कर दी गई है। अविनाश रसाल इस बेइजत्ती से इतने आहत हो गए की NIA की पैरवी से हटने की धमकी दे डाली। NIA की भद्द पिटनी शुरू हुई तो उनके अफसरों ने अविनाश रसाल के सामने हाथ जोड़ दिए कि हमसे गलती हो गई, आइन्दा से इसका ध्यान रखेंगे। बहुत मुश्किल से अविनाश रसाल माने लेकिन उनकी नाराजगी और मनुहार के बिच NIA की जो किरकिरी हुई वो सियासत में तूफान खड़ा करने के लिए काफी था। 19 सितम्बर 2008 में मालेगांव में जबरदस्त धमाके हुए थे। ब्लास्ट में 4 लोगो की मौत हो गई थी और 79 लोह जख्मी हो गए थे। इसके जांच में ATS को हिन्दू अतिवादी के हाथ होने के सबूत मिले थे। बीजेपी और शिव सेना ने उसी वक्त से इस जांच का विरोध करना शुरू कर दिया था। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित को इस मामले गिरफ्तारी के बाद ATS ने सुलझा लेने का दावा किया था। लेकिन सरकार बदलने के साथ ही सबूत भी बदल गए, जाँच की दिशा भी बदल गई, आरोपी भी बदल गए। मालेगांव धमाके पर अबतक जितनी राजनीती हो चुकी है इसका सच्चाई शायद ही पता चल पाए।
अब NIA की चार्जशीट सही है या गलत हम इसका पड़ताल नही करना चाहते। ये तो NIA ने बताया है की मालेगांव धमाके की जाँच जो ATS हेमन्त करकरे की टीम ने की थी जो सरासर गलत है। दरअसल NIA ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर कर्नल पुरोहित और दूसरे आतंक के भगवाधारी को बचाने के लिए ATS हेमन्त करकरे को ही झूठा साबित कर दिया। आरोप लगाया कि उन्हें फंसाने के लिए करकरे की टीम ने खतरनाक चाले चली थी।
क्या मालेगांव धमाके पर हेमन्त करकरे ने झूठी जाँच की थी ? क्या 26/11 के शहीद करकरे ने सरकार को गुमराह किया था ? क्या शहीद करकरे ने मालेगांव के आरोपियों को फँसाने की साजिस रची ? इस सबाल का जबाब हाँ हो या ना लेकिन जिस शहीद की सरकार ने शांतिकाल के सबसे बड़े बहादुरी सम्मान से नवाजा था इसके नेतृत्व की निष्ठां पर NIA ने अपनी चार्जशीट में क्रूर सबाल उठाया। और ऐसे सबाल उठाए है जो करकरे को शहादत को सलाम करने बाले जाँच के नाम पर उनका मजाक बना रहे है। और उस मजाक के बाद मालेगांव धमाके की जाँच के तोते उड़ गए। मतलब जिस हेमन्त करकरे ने मुम्बई हमला के दौरान आतंकवादियों से अपने सीने पर तीन तीन गोलियाँ झेली उसके सम्मान को एक झटके में आसमान से पाताल में पटक दिया है देश की राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने। जिसके भरोसे मुम्बई महफूज थी, जिसने अपने फर्ज को आखिरी साँस तक निभाया, जिसकी जांबाजी पर देश को नाज है, उसकी जाँच NIA के लिए संदिग्ध है। मालेगांव धमाके में फंसे हुए तमाम भगवाधारी NIA के लिए ईश्वर का दूत हो गए और ATS प्रमुख करकरे संदिग्ध।
NIA ने शहीद करकरे की जाँच को ना सिर्फ कूड़े का ढ़ेर माना है बल्कि उनकी नियत पर भी गम्भीर सबाल उठाया है।उसने उनके जाँच पर कहा है कि उसमे बेहिसाब खामियाँ है। चश्मदीदों के व्यान दबाब में लिया गया है ,प्रज्ञा के खिलाफ मनगढंत सबूत जुटाए गए। साथ में ये भी आरोप लगाया की कर्नल पुरोहित के घर ATS ने खुद विस्फोटक रखबाया और बाद में साजिस के तहत उसकी बरामदी की गई। NIA के चार्जशीट की सच चाहे जो हो लेकिन इसमें शहीद हेमन्त करकरे की सम्मान को कुचल कर रख दिया है। जिस साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ सबूत जुटाने में उन्होंने दिन रात एक कर दिया था NIA के चार्जशीट में कही जिक्र तक नही है। NIA ने अपने चार्जशीट में साफ़ लिखा है कि इनके खिलाफ मकोका लगाने का कोई आधार ही नही है ? इसका सीधा मतलब यह है कि प्रज्ञ से पुरोहित तक चार भगवाधारी आराम से जमानत पर छुटकर बाहर आ जाएंगे। और यह अचानक नही हुआ है, तीन महीना पहले ही NIA के पूर्व वकील रोहिणी सल्यान अदालत में वाकायदा लिखकर दिया था की उनपर आरोपियों के खिलाफ हल्का रुख अपनाने का दबाब है। NIA के SP का नाम लेते हुए कहा था की मालेगांव का निष्पक्ष जाँच सम्भव ही नही है। उन्होंने यहाँतक कहा था की नई सरकार के आने के बाद इस मामले को कमजोर किया जा रहा है। आखिरकार वही हुआ जिसका अंदेसा रोहिणी सल्यान ने जताया था।
जिन भगवाधारियों के खिलफ शहीद हेमन्त करकरे ने 4500 पन्नों की चार्जशीट दायर की थी उसे NIA ने कूड़े में फेंक दिया है और इसी के साथ फेंक दिया है हेमन्त करकरे की सम्मान को।
तो क्या सरकार बदलते ही गुनाह बदल जाता है ? गुनहगार बदल जाते है सबूत बदल जाते है। इसका आशंका NIA के पुराने वकील रोहिणी सल्यान ने 3 महीने पहले ही जता दिया था। केस से हटते हुए अदालत में खड़े होकर कहा था कि सरकार बदलने के साथ ही NIA साध्वी प्रज्ञा ठाकुर कर्नल पुरोहित और उनके चार भगवाधारी साथियों को बचाने के लिए उनपर भारी दबाब है।उन्होंने आशंका जताया था की मालेगांव का निष्पक्ष जाँच अब सम्भव नही है।
NIA के जाँच का सीधा मतलब यह है कि ATS जाँच नही कर रही थी वो साध्वी प्रज्ञा कर्नल पुरोहित और उनके साथ चार भगवाधारी को फंसा रही थी। मतलब NIA के चार्जशीट के मुताबिक ATS और अपराधिक मुकदमा दर्ज होनी चाहिए। NIA के चार्जशीट से कही से पता नही चलता की मालेगांव में धमाके करबाया किसने ? ऐसा लगता है जैसे NIA को इससे कोई मतलब ही नही था वो तो यही साबित करने पर आमादा दिखती है कि जिन आरोपियों को ATS ने पकड़ा है उन्होंने वो हमले नही करबया है। सबसे संगीन आरोप साध्वी प्रज्ञा और कर्नल श्री कान्त पुरोहित पर थे लेकिन उन्हें बेकसूर साबित करने के कोशिस में NIA ने ATS को ही अपराधी बना डाला है।
अब जानिए कि ATS ने जाँच रिपोर्ट में क्या पाया था जिसे NIA फर्जी झूठा और जालसाजी बता रही है ? ATS ने कहा था मालेगांव धमाके में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का मोटरसाइकिल का इस्तेमाल हुआ, साध्वी ने बैठकर हमले योजना पर विस्तार से बात किया, कर्नल पुरोहित ने भोपाल बैठक में भाग लेकर विस्फोटक का इंतेजाम करबाया, कर्नल पुरोहित ने हमले के लिए खास तौर पर हमले के लिए कश्मीर से विस्फोटक मंगबाया, वही साध्वी प्रज्ञा ने हमले के लिए लोगो का इंतेजाम करने की बात कही,कर्नल पुरोहित ने दूसरे आरोपियों के साथ मिलकर पुणे में बम बनाई। इतने गम्भीर आरोपो को NIA ने बकबास, फर्जी और साजिसाना करार दिया और दावों के मुताबिक सबूतों के आधार पर।
क्या ये सब जाँच का अंतर है कि ATS ने जिन आरोपियों को मकोका के धाराओ के तहत सलाखों के पीछे डाला NIA के जाँच में बेकसूर और बेदाग निकल गए ? NIA के जाँच में कहा गया कि आरोपियों को तो मालेगांव धमाके की जानकारी ही नही थी। पुरोहित के खिलाफ ATS ने गलत सबूत पेश किया, घर में बम रखकर ATS ने उसे जानबूझकर फंसाया और साध्वी के खिलाफ तो बहुत ही कमजोर सबूत है। NIA ने कहा है की ब्लास्ट में इस्तेमाल हुई मोटरसाइकिल साध्वी की थी तो सही लेकिन इसका इस्तेमाल दो साल से रामचन्द्र कर रहा था।
हो सकता है NIA की जाँच ही सही हो ? ऐसे में साध्वी प्रज्ञा कसुरबार नही होंगे, कर्नल पुरोहित भी कसुरबार नही ठहराए जाएंगे और उनके चार चार साथी भी बेकसूर होंगे। तो सबाल उठता है कि 8 साल तक इन बेगुनाहों को सलाखों के पीछे सड़ाने के लिए गुनहगार कौन है ? क्या उन्हें सजा मिलेगी ? अपना राय जरूर लिखे।
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