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Tuesday, March 8, 2016

महिला सशक्तिकरण: पीड़ा महिला पुलिस की, बुनियादी जरूरतों के लिए जद्दोजहत करती

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभ कामना

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। महिला सशक्तिकरण पर सरकार ने महिला बहुत बड़ा फैसला लिया है की उच्च पदों पर महिलाओ की तैनाती होगी जबकि सीमा सुरक्षा बल में 15 फीसदी महिलाये होगी। लेकिन बिना ठोस आधार के ऐसे सरकारी फैसले अपना वजूद खो देता है। पुलिस विभाग में वाकायदा रिसर्च हुआ है महिला की समस्या को लेकर लेकिन अफ़सोस ऐसे तमाम शोध रद्दी के टोकरे में फेंके जा चुके है। महिला पुलिस के काम काज पर एक सेमीनार हुई जिस पर देश भर की महिलाये शामिल हुई तो पता चला की महिला पुलिस को खुद भारी मुश्किलो का सामना करना पड़ रहा है।

महिला पुलिस वर्दी में भी बेबस क्यों ?

वर्दी में ताकत को ढूंढती महिला एक साधारण जरूरत के लिए कितना बेबस महसूस करती है ?वो लम्बे वक्त तक पानी नही पीती ताकि काम के दौरान शौचालय ना जाना परे। बात मामूली लग रही है लेकिन ठीक से सोचिये शर्म से गर जायेंगे अपनी बहन बेटियो से नजरे चुरा लेंगे, सुचना क्रांति पर सबार 21वीं सदी की ये औरत अपनी प्यास को हलक में ही मार देती है क्योंकि तराबट बाला ये पानी इन्हें बिच सड़क पर गिराबट के अंधी ढलानों पर खड़ा कर देता है। पुलिस बाली ये औरते पानी कम पीती है की क्योंकि ड्यूटी के बिच शौचालय कहाँ जाय, पानी काम पीती है क्योंकि पुलिस चौकी में अलग से महिला शौचालय नही है पानी कम पीती है की काम के बिच सम्मान ऐसे ही बचता है,

बुनियादी जरुरतो के लिए जद्दोजहत करती महिला पुलिस

परन्तु पानी कम पीना मतलब किडनी को नुक्सान , लिवर को नुकसान नजरो को नुकसान सेहत की नुकसान लेकिन अपने ही ऊपर रोज का अत्याचार पुलिस बाली औरतों की जन्दगी है । हर कहानी समाज के नाम पर एक कलंक है और कालिख सरकारी नारों पर। इस गुलामी की कोई आजादी नही।उन्हें अपनी छुट्टी की लेकर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, प्रोमोसन में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। पुलिस की नौकरी में महिलाये अबतक पुरुषो के बराबरी नही कर पाई है। शोध में यह भी पता चला की जो हथियार है वो पुरुषो को देखकर बनाया गया है।महिला पुलिस को इन हथियार को चलाने में दिक्कत आती है और इतना लम्बा अरसा हो जाने के बाद भी अभी तक इस मसले पर कुछ नही किया गया है। महिला को टोपी और वर्दी पहनने में भी समझौता करना पड़ता है। वर्दी और टोपी भी पुरुषो के हिसाब से बनते है। महिला पुलिस किसी तरह से उस खांचे में फिट किये जा रही है।

शोध में उतपन्न समस्या रद्दी की टोकरी में क्यों ?

पुलिस डिपार्टमेंट में महिलाओ की समस्या पे विचार करने के लिए हर दो साल पर एक सेमिनार होता है। उस बार भी समस्याएं तो सामने आ गया है। अब देखते है की 21वीं सदी में इन महिलाओं की बुनियादी समस्या खत्म होने में कितना वक्त लगेगा ? "कद्र अबतक तेरी हालात ने जानी ही नही,अपना उनमान बदलना है तुझे"

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