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Tuesday, March 22, 2016

क्या उत्तराखण्ड के चुनी हुई लोकप्रिय सरकार को अस्थाई या पैर तोडना अलोकतांत्रिक नही ?

विधायको के खरीद फरोख्त यानि हॉर्स ट्रेडिंग
90 के दशक की शुरुआत में एक नया शब्द का इस्तेमाल हुआ हॉर्स ट्रेडिंग। घास खाने बाले घोड़ो के खरीद विक्री नही रुपये डकारने बाले राजनेताओं की खरीद विक्री। सत्ता की सियासत में कुर्सी हथियाने के लिए सांसद और विधायको के खरीद फरोख्त का भरा पूरा इतिहास है जिसका वर्तमान है उत्तराखण्ड। देहरादून से लेकर दिल्ली तक हलचल है। लोकतन्त्र के कुछ शातिर घोड़ो ने ऐसी छलांग लगाईं है कि कोंग्रेस और बीजेपी के अस्तबल छोटे पड़ गए। घुड़दौड़ होती ही ऐसी हो वो चाहे रेस के घोड़े हो या राजनीती के।
संबिधान की कसम खाते है और काम गैर संबैधानिक
आपको लगा होगा की शक्तिमान का टाँग टूट जाने के बाद उसका मनोबल टूट गया होगा लेकिन ऐसे जजबाती घोड़े होते है जिसका मनोबल नही टूट सकता। इन विधायको से पूछे की संविधान की कसम खाने बाले ये घोड़े कैसे आइस-पाइस खेल रहा है ? गजब का सिन चल रहा है बॉस ,कॉंग्रेस की सरकार चल रही थी पता चला की 9 घोड़ो को बीजेपी ने अपनी घुड़साल में बाँध लिया ।विधायको को लेकिन क्या फर्क पड़ता है घोड़ो से भी बुरी हालत में थे विधायक, ना हिनहिना सकते थे, ना खूंटा तोड़ सकते थे, ना दुलत्ती मार सकते थे। पाँच सितारा होटल के खूँटे के साथ बंधे पगुराते है।
बीजेपी द्वारा चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार पर आक्रमण
मुख्यमंत्री हरीश रावत घायल घोड़े का एक्सरे देखते रह गए और बीजेपी उनकी राजनीती के घोड़े खोल ले गई, बोले तो विधायक। अब 28 मार्च को बहुमत साबित करना है तो ना पगहा मिल रहा है ना खूंटा घोडा है की बेचारे हिल भी नही पा रहे है। हालात ये हो गई है की उत्तराखण्ड के विधायक को  देहरादून से सीधे गुरगांव के होटल लीला में खूंटेस दी गई जैसे विधायक ना हुए कोई डायनासोर की खुल जाएंगे तो किसी को खा लेंगे लेकिन घोडा तो बना ही दिया है ऐसी राजनीती में।
दलगत विचारधारा कोई मायने नही ईमान धर्म बस रूपये
चौरासी योनियों के उस चराचर में पूरी मानव जाति ने सभ्यता के विस्तार में विधायक ही ऐसी प्राणी है जिसे खुलेआम घोडा कहा जाता है और इसी का व्यापार को हॉर्स ट्रेडिंग। पता नही किस की कीमत क्या लगी है पर सपथ ग्रहण के समारोह का इन्तेजार सभी को है। लोकतन्त्र के इस घुड़दौड़ में कुछ विधायक मैदान में है, कुछ गायब हो गये, कुछ जानबूझकर सामने नही आ रहे है। हर गुजरते दिन के साथ दाँव बदल रहे है। बीते शाम महामहिम के सामने कुछ लोगो ने हाजिरी लगाई।
घोड़ो का घुरदौर होती तो फिर भी फैसला हो जाता लेकिन राजनीती के घुरदौर में रेफरी तक परेशान है की इस मसले का क्या हल है इस रेस का जिसमे नैतिकता का स्तर न्यूनतम से भी कम हो गया हो। बड़ी गजब परिस्थिति है सरकार बनना है उत्तराखण्ड में और बीजेपी कोंग्रेस के विधायक को लेकर वर्ल्ड टूर पर है।यह राजनीती की असल स्वार्थनीति है जो सत्ता के रेस में घोड़े जैसे दौड़ लगा रही है।
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