JNU कैम्प्स में मामला जो लेफ्ट राईट से शुरू हुआ था उसमे सेंटर भी कूद पड़ती है और देखते ही देखते पूरा का पूरा लेफ्ट राइट सेंटर हो जाता है जिसमे सेंटर का झुकाव राईट की तरफ है या यूं कहे की सेंटर ही राईट है तो कोई हर्ज नही है,बाकि इसके आगे इसकी रही सही कसर मिडिया में पूरी हो जाती है ,देशविरोधी नारा का कुछ ऐसे आधे अधूरे वीडियो आता है और ऐसे मंजर बनाकर पेश किया जाता है की मिडिया के सारे टीआरपी कन्हैया को कुचलने में लग जाती है,अचानक ऐसे लगने लग जाता है की देश में सिर्फ देशद्रोह है और कुछ है ही नही ।
मौका अच्छा था क्योंकि नेता भी अपनी सियासी रोटियॉँ सेकने अपने अपने कूचे से निकल पड़े हर नेता और पार्टी ने अपना अपना देशद्रोही चुना और अपना अपना देशभक्त की सुनने बाला ही कन्फ्यूज हो गए की कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोह, वैसे देशभक्ति का व्यार अपने यहाँ खास खास मौके पर दीखते है लिहाजा हर मौकापरस्त खुद को सबसे बड़ा देशभक्त बनाने की होड़ में लग गए,इस होड़ में कोई किसी से पीछे नही रहना चाहता था वो चाहे अपने वकील ही क्यों ना हो उन्हें भी लगा मौका हाथ से ना जाने पाय, अदालत के फैसले का क्या इन्तेजार करना , कोर्ट रूम के वजाय सड़क पर ही उसे देशद्रोह साबित कर फैसला कर देते है,उन्होंने किया भी देशभक्ति का सर्टिफिकेट जो लेना था वैसे कोर्ट रूम में उनके देशभक्ति को कितने लोग देख पाते ।
पर तमाशा अभी खत्म नही हुआ था कई दिनों से जिस कन्हैया को चीख चीखकर देशद्रोही बना दिया था गृह मंत्रालय के सूत्रो से पता चला है की उन्होंने देशद्रोही जैसे कोई नारा लगाया ही नही था, नारा लगाने बाले कुछ अलग लोग थे फिर क्या गिरगिट भी इतनी तेजी से रंग नही बदलता मिडिया भी अपने सुर बदल लेती है,अब हेडलाइन बदल कर सारी ताकत DSU के उमर खालिद को पकड़ने पर लगा दी जाती है जिन्होंने मकबूल और अफजल के पक्ष में एक सभा बुलाई थी जिन्होंने सरकार और सत्ता की खिलापत करते करते जाने कब मुल्क के खिलाफ खड़े ही गए।
और फिर एकबार छात्र रविवार के फिर कैंपस में दिखाई देते है परन्तु VC महोदय ने इस बार पुलिस को अंदर आने की इजाजत नही दी इसलिए बस्सी एंड कपंनी मुख्य गेट पर पहरेदारी कर रहे है उधर छात्र नेता भी सभा करके लगाये गए सारे आरोप को ख़ारिज कर रहे है। अब तो अदालत ही निर्णय करेगा कौन देशभक्त है और कौन गद्दार ?
ना समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दूस्तां बालो,
तुम्हारे दस्ताने भी ना होंगे दास्तानों में ।
तुम्हारी ताकत एकता में है वतनपरस्ती में है देशभक्ति में है, हमारी आंसू जब गिरते है तो इसी जमीन के दामन पर ही सूखते है, इस मिट्टी की हिफाजत ही हमारा पहला फर्ज है,हम हिंदुस्तानी है और हम अपने घर पर ये आंच नही आने देंगे, बस हम सबका यही मकसद हो,
सोच में फर्क हो सकता है लेकिन देशद्रोही और देशभक्ति में फर्क नही हो सकता ।
दरअसल देशभक्ति और देशद्रोही का सबाल JNU से कही आगे सियासत तक पहुँच चुकी है,साल भर बाद यूपी चुनाव की तयारी का एक झलक उपचुनाव के नतीजो से नजर आ रहा है,मुज़फ्फरनगर में हिन्दू बहुतायत होने का फायदा बीजेपी को मिली जहाँ देववन्त में मुस्लिम बाहुल्य के वजह से कोंग्रेस को। मतलब जातीय व धर्म के आधार बोटों की बटवारा बीजेपी के लिए फायदा है तो कॉंगेस् को मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीती से अपना बोट बैंक बनाए रखना है ।
ये सबाल इसलिए की मौजूद वक्त में ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि शेयर बाजार निचे है रुपैया लगातार कमजोर हो रहा है और डॉलर ऊपर, एक्सपोर्ट सनसे निचे है तो रोजगार गायब यानि जो सबाल पेट से जुड़े है वो सारे गायब और चुनावी राजनीत उन सबालो से भाग रही है और जो सबाल कानून व्यवस्था में है उन सबालो के जरिये देश की सियासत गर्म है, संसद सत्र सीर पर है तो क्या संसद का बजट सत्र फिर से JNU हंगामे में स्वहा हो जायेगा ? क्या बजट से ध्यान हटाने के लिए ये जाल बुना गया है ?
इस देश के भष्टाचार की दीमक के साथ लपेटकर खाने बाला नेता क्या देशद्रोह नही है ? हमारा ही कोई भाई भूख से कही मर जाय उसके मौत की जिम्मेदार क्या ये देशद्रोही नही है ? सड़क पर हादसे में मरता हुआ इंसान को छोड़कर भागने बाला क्या देशद्रोही नही है ? समाज में नफरत फैलाकर चुनावी रोटियाँ सेकने बाले क्या देशद्रोही नही है ? अमीरी और गरीबी के बिच चौड़ी खाई खोदने बाला क्या देशद्रोही नही है ? सोचियेगा जरूर क्योंकि सोचना आपको ही है जहाँ मामला देशभक्ति और देशद्रोही के बिच के फर्क का है ।
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