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Thursday, February 4, 2016

समाज में स्त्री क्या पुरुषों के हाथ का खिलौना है ? महाराष्ट के गाँव की पंचायत ने स्त्री को नग्न होकर चलने की फरमान या पुत्र के अग्नि परीक्षा से खुद को पवित्र साबित करना होगा।

'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' .अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवताओं का वास होता है। आइये देखिये आज के युग की हकीकत नासिक में पंचायत का फरमान का खौफ बरकरार है। आए दिन खाप पंचायत के फैसलों की खबर आती रहती है। जोकि गांव की विकृत मानसिकता वाले दबंग किस्म के लोगों का संगठित गिरोह होता है। महाराष्ट्र के नासिक में भी खाप पंचायत का ऐसा ही एक शर्मसार कर देने वाला फरमान सामने आया है।

पंचायत ने एक विधवा को तुगलकी फरमान सुनाया। फरमान ऐसा जिसे जिससे इंसानियत ही शर्मसार हो जाए। महिला के पति की मौत हो गयी थी। पति की मौत के बाद देवर उससे सम्बन्ध बनाना चाहता था लेकिन महिला इसके लिए राजी नहीं थी। देवर ने जब देखा कि ऐसे बात नहीं बनेगी तो उसने भाभी पर शादी के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया। फिर पंचायत ने इंसानियत को शर्मशार करने बाली तुगलकी फरमान सूना डाला।

सच में पुरुषवादी मानसिकता की पराकाष्ठा कहना अतिशयोक्ति नही होगी । विचार शून्य व्यकि के सोच की नंगापन ? प्रत्येक धर्म में नारी को पुरुषों ने अपने अपने फायदे के हिसाब से उपयोग किया है । उन्हें अपवित्र तक कहने में किसी को लज्जा नही आती है ? अरे जिन्होंने हमें जन्म दिया है वो भला अपवित्र कैसे हो सकता है ?

परन्तु हमारी पौरुष जाग जाती है की वह स्त्री है हम भूल जाते है की वो हमारी माँ ,बहन ,बेटी धर्म पत्नी इत्यादि है । क्या यही है नारी के लिए हमारे देश में न्याय व्यवस्था ? नारी होना क्या अपराध है ? क्यों बार बार नारी को पुरुषों द्वारा प्रताड़ित की जाती है ? क्यों 21वीं सदी के देश में इस तरह का जंगली कानून समाज में बनाये जाते है ? क्या यही नारी सुरक्षा है, जिसके लिए सरकार बड़े बड़े योजना ला रहे है ?

दरअसल नारी का शोषण हर युग में होता रहा है चाहे वो द्वापर युग में सीता जी का हो या त्रेता युग के महाभारत में दौपदी का । लेकिन नारी शक्ति का पतन असल में महाभारत युद्ध के बाद शुरू हुआ। इस युद्ध के बाद परिवार, समाज बिखर गया, राजनितिक शक्ति क्षीण भिन्न हो गए और विधबा महिलाएँ संकट में फंस गई थी। राजनितिक शून्यता, धार्मिक कट्टरता के कारण महिलाएं सांस्कृतिक और आर्थिक शोषण के शिकार होने लगी।

परन्तु वह दौर इतना बुरा नही था जितना की मध्य काल रहा। पुराने समय में अर्धांग्नी समझी जाने बाली नारी मध्य काल में पुरुष उन्हें अपनी सम्पति समझने लगी। पुरुषवादी मानसिकता व धर्मान्धता ने नारी की स्वतन्त्रता पर अंकुश के साथ साथ शोषण करना शुरू किया। धर्म और समाज के जंगली कानून भी नारी को पुरुष से निचा दिखाना और उसे उपभोग की बस्तु बनाकर रख दिया ।

वैदिक युग की नारी दैवीय पद से निचे खिसककर मध्यकालीन सामन्तवादी युग में कमजोर होकर शोषण का शिकार होने लगी।पुरुषवादी मानसिकता ने सामूहिक रूप से नारी को पुरुषो पर निर्भर बनाने हेतु उसे पतित शक्तिहीन विद्याहीन,साहसहीन बताकर उन्हें अहसास जता दिया की नारी समाज देश और धर्म में विशेष स्थान नही । ताकि अपने जीवन यापन,इज्जत और आत्मरक्षा के लिए पुरुषों पर निर्भर रहे।
जरूर सोचे। जय माता जी।

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