फ़ितरते पाकिस्तान ऐसी है की अपनी नापाक हरकतों से कभी बाज ही नही आता। अगर हम अपनी जुबान में बोले तो "कुत्ते की दुम कभी सीधी नही होती" वर्ना क्या क्या नही किया ? जंग में लताड़ा, कई फाड़ कर दिया, मारा पीटा, प्यार से समझाया, रिश्ता तोडा-बनाया, क्रिकेट बन्द किया, यहाँतक की कारगिल में धूल चटाया लेकिन ये बेशर्म है की बार बार हारने के बाबजूद अपनी घटिया हरकतों से बाज नही आता। दरअसल लात के देवता बात से तो कभी सुनेगे ही नही। पर इन बदजात सरफिरे से कैसे निपटे ये बहुत बड़ा सबाल है ?
जाहिर सी बात है पाकिस्तान अपने आप को बदनाम कैसे कर सकता है ? अगर अभी भी लगता है अपने देश के आतंकी के आका को गिरफ्तार कर , उनके प्रशिक्षण केंद्र को नष्ट करने का कोई ईमानदार कोशिस करेंगे तो भूल जाए। ये शरीफ की शराफत से बाहर की बात है? जो खुद जानबूझकर आतंकी घटना को अंजाम देते है जिनके आतंक की फैक्ट्री में खुद फ़ौज ट्रेनिंग देते हो, उनको सबूत देकर भी उनसे क्या उम्मीद कर सकते है? सबूत पर सबूत मांगते रहेंगे जैसे की पहले हुआ है परन्तु कोई ठोस करवाई की उम्मीद करना इन जाहिलों से बईमानी होगी।
दरअसल जगजाहिर है की पाकिस्तान की विदेश निति सरकार नही वहाँ की फ़ौज बनाती है । फ़ौज की पहली पढाई भारत विरोधी व हिन्दू विरिधि मानसिकता से तैयार किया जाता है इसलिए वहां की फ़ौज और आतंकी दोनों साथ मिलकर भारत के खिलाप अप्रत्यक्ष लड़ाई लड़ते है क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से लड़ने का अंजाम कई बार भुगत चूका है और हालात बदतर पहले से है और जानता है अगर फिर जंग छिड़ गई तो ना जाने और कितने टुकड़े हो जाएंगे ।
झगड़ा हमारा आपस का है तो मसला द्विपक्षीय होनी चाहिए किसी भी तीसरे पक्ष को बिच में पड़ने की कोई आवश्यकता नही है ? अमेरिकन राष्ट्रपति मोदी जी की बहुत बड़े प्रशंशक है परन्तु सबकुछ जानते हुए भी कोई कदम क्यों नही उठाता ? उनपर आर्थिक प्रतिबन्ध, विश्व मन्च से वहिष्कार क्यों नही करता ? परन्तु उनकी दोगली निति है बाबजूद अरबो रुपैये अनुदान राशि देते है जिसका बहुत बड़ा हिस्सा आतंक की फैक्ट्री पर खर्च करता है परन्तु उसकी आतंकवाद की भट्ठी सिर्फ भारत को ही नही, तुम्हे भी एक ना एक दिन फूँक देगी ।
समय रहते अगर इन जाहिलो पर लगाम नही लगाया गया तो एक दिन दुनिया के तमाम देश उनके निशाने पर होगा ये तय है।
हमे खुद ही अपनी देश को सजाना और संवारना होगा और इसके लिए रोज रोज मरने के वजाय एक बार आर पार का खेल खेलना ही होगा । हाथ पे हाथ धरे भला कबतक अपने जाँबाज सिपाहियो के शहीद होने पर मातम मानते रहेंगे ? और पाकिस्तान से रिश्ता बनाने के लिए उनके घर जाकर मिन्नते करते रहेंगे । क्या हम वाकई इतना मजबूर है , ये सिर्फ हमारी एकतरफा जरूरत है ? पाकिस्तान से जब भी हमने अच्छे रिश्ते की उम्मीद किया है बदले में उन्होंने पीठ में छुड़ा घोंपा है। ये वास्तव में कुत्ते की दुम है जो कभी सीधी नही होती है ।
No comments
Post a Comment