Merchanding Exporter होने के नाते बिता हुआ साल व्यवसाय के दृष्टिकोण से आजतक का सबसे कमजोर वित्तीय साल रहा है । वित्तीय वर्ष 2015 - 2016 माल का निर्यात यानि Merchandise Export के व्यवसाय ने यहाँ तक की आजादी के बाद दूसरा सबसे ख़राब निर्यात का प्रदर्शन का साल रहा जहाँ की तकरीबन 16% गिराबट की अनुमान लगाया जा रहा है । इससे पहले 1952-53 में इस उद्योग का सबसे बुरा साल था जो तकरीबन 18.7% का गिराबट था ।
निर्यात में गिराबट के कारण रोजगार पर भी असर पड़ना लाजमी है और ऊपर से सरकार की ओर से वेतन में बढ़ोतरी जो शायद "सर मुड़ाते ओले पड़ने" बाली बात को सिद्ध करता है । जिससे इस उद्योग के व्यवसाय पर बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ना तय है ।
सरकार की ओर से मजदूर और फैक्ट्री के बिच सुधारनीति में तालमेल की कमी दर्शाता है और इस तरह से बेरोजगारी और बढ़ने की आसार है क्योंकि अगर कम्पनी में काम नही रहेगा तो रोजगार कहाँ से देगा,और कम्पनी के मालिक चाहकर भी मजदूर को लगातार काम नही दे सकता है ? और ये बहुत बड़ी चिंता का विषय है । जिसके लिए निश्चित तौर पर सरकार की निति जिम्मेदार है। सिर्फ मजदूरी बढ़ा देने मात्र से निजी क्षेत्र के मजदूरो को कोई ज्यादा लाभ नही मिल सकता है जबतक कम्पनी में भरपूर काम ना हो ।
हालांकि, विदेशों में कमजोर मांग, उपयोगी वस्तुओं की कीमतों में गिरावट और मुद्रा में उतार-चढ़ाव सहित कई कारकों के अलावा' निर्यात के क्षेत्र में लेनदेन के रूप में उच्च ब्याज दर व सरकारी सहायता राशि जो की व्यवसाय को बढ़ाबा देने के लिए मिलता है उसमे सरकार की ओर से देरी और अच्छी नीतिगत ढंग से जारी नही करना भी मुख्य कारण रहा है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक कें मुद्रा में उतार-चढ़ाव से संबंधित मुद्दों पर गौर करने और कई देशों में भारत का निर्यात करने में मदद करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत महसूस की है और पिछले एक साल में मुद्रा के अवमूल्यन से भी भारत का निर्यात प्रभावित हुआ है ।
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