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Thursday, August 1, 2019

||★|| रोबोट ||★||

लाल कक्का छथि बड्ड सोझगर
बारीक लताम जकाँ सुआदगर
सिंघहि आ माँगूर जकाँ चहटगर
दही चुरा चीनी जकाँ मिठगर
गामक मखान जकाँ फोंकगर आ
कखनो काल पिजाएल फार जकाँ नोकगर
हिनकर अलंकारमे की कहु आ कतेक कहु
कल्पनाक पन्ना भS जाएत छोट।

बहुत दिनक बाद देखल गेलाह
लाल कक्काक मनोभाव अधीर अशांत
चलैत ओ ठमकि गेलाह गामक चौबटिया पर
आ बैसि गेलाह ओतय ओछायल पटिया पर
चरण स्पर्श करैत हम पुछलिएनि
कक्का की हाल चाल?
चुप्पी तोड़ैत कहलनि हौ राम
लोकतन्त्रमे आब लोकक रहि गेल अछि केवल नाम

हम पुछलियैन्ह की भेलैक कक्का
कहलनि हौ तँत्र सभ तँ बिकाईए
साग पात जकाँ गामक हटिया पर
मनोरोगी जकाँ पड़ल अछि ओ सब
बेमार अस्पतालक खटिया पर
वेश्या आ तन्त्रमे आब बेसी फराक नहि बुझह
एकटा उदरपूर्ति लेल धँधा करैत अछि
दोसर स्वार्थपूर्ति लेल
सरेआम सभकेँ अंधा करैत अछि

एहन विषधर काल अछि ई सब जे
अपनहि नेनाक भक्षण करैत अछि
देश कोसक रक्षा सुरक्षा
की ओ खाक करताह?
निर्लज्जताक सीमा लाँघि जे
सत्ता सुख लेल केवल मरैत अछि।

डीएनए जखन गड़बड़ाए रहनि
तखन ओ साहेबकेँ फोटो देखबामे बुझथि पाप
से आई चरणमे बैसि चरणचाटन करैत
कS रहलाह हुनकहि मंत्रजाप
ऐं हौ एकाँएक की बदलि गेलइ
जे हिनकर मोन मचलि गेलनि
सभकिछ तँ अहिना जहिना
चारि बरख पहिने रहय।

मुदा ओ मनुक्ख नहि 
बनि गेल अछि रोबोटक आत्मा
मशीनक कोन अचार विचार व्यवहार
कहाँ रहैछ ओकरामे वेदना संवेदना
कतहु आगि लगौक रौदी हो व दाही हो
गामक गाम किएक नहि कालकल्पित भS जाए मुदा
ताहूमे ओ राकस अपन पेटे कुरिआबैत भेटतह

ओ तँ माथमे राखल चिपक आदेशपालक छथि
पीड़ाक भाव कतय भेटत
तेँ केहनो बिपतिमे ओ कहिओ नहि कानैत छथि
मनुक्ख जानि हमरा सभ सोचैत रहैत  छी
तेँ बेसी काल ओकरा लेल झखैत रहैत छी।

जयमिथिला || जयमैथिली || जयजय मिथिलाक्षर

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