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Thursday, January 21, 2016

प्रेस कॉन्फ्रेन्स में स्मृति की सफाई पर प्रश्नचिन्ह ?

रोहित की आत्महत्या पर उठे सबाल पर सफाई देने के लिए कल स्मृति ईरानी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया सिर्फ इसलिए की मोदी जी के लिए दलित विरोधी घtटना गले की फांस बन गया था परन्तु इस सफाई में हैदराबाद से मुम्बई और दिल्ली के सड़को सरकार से सबाल करते लाखो छात्रो को स्तब्ध कर दिया। इस सफाई में कही नही थी तय छात्रो से अलग विचार रखने बाले छात्रो के जिक्र, सबाल करने बाले छात्रो के जिक्र। रोहित ने जिस सोच की आजादी के लिए जान दी उसे रत्ती भर फ़िक्र नही दिखी शिक्षा मंत्री के सफाई में । शिक्षा मंत्री जी के सिर्फ इस बात पर जोर था की रोहित की मौत पर  दलित राजनीती नही होनी चाहिए।
तिन दिनों तक शिक्षा मंत्रालय रोहित की जाती पता करबाने में लगा रहा। शिक्षा मंत्री ने कहा कि रोहित दलित था ही नहीं । तिन दिनों में स्मृति ईरानी ने एक एक कर सभी की जाती पता कर ली है । उन्होंने एलान किया कि वहाँ के वार्डेन दलित है , जांच करने बाला प्रोफेसर दलित है । मतलब सरकार इस पुर मामले को सिर्फ दलित राजनीत पर समेत दिया। सच तो ये है कि स्मृति ईरानी सिर्फ विपक्ष को जबाब दे रहे थे , बीजेपी के विरोध करने बाले पार्टियो के लिए था।
लेकिन उन्होंने जबाब नही दिया की छात्रों को राष्ट्र विरोधी किस आधार पर बताया ? इसका जबाब नही दिया की दत्तात्रय की बातो को बिना जांच किये सही कैसे मान लिया और करवाई के लिए रिमाइंडर पर रिमाइंडर भेजने लगे ? रोहित की मौत पर मोदी सरकार की हड़बड़ी इसीसे साफ़ हो जाता है की अपने ही द्वारा बनाये गए फैक्ट फाइंडिंग को लौटने का इन्तेजार नही किया ?
ये तो सियासत का तकाजा था की रोहित की चिट्ठी के बहाने सबको लगभग बड़ी कर दिया। स्मृति ईरानी ने सरकार की सोच को साफ़ कर दिया है की रोहित को राष्ट्रदोष के आरोप ने नहीं मारा , यूनिवर्सिटी में हो रहे दमन ने नही मारा दलित छात्र से हो रहे सामूहिक वहिष्कार ने नही मारा मतलब "No one killed Rohit" ।
इन्तेहा कहते है मतलब रोहित के मौत से उपजे हर सबाल सियासत ने साजिस बना डाला । एक नही सजिसों का सिलसिला चल पड़ा। दलित राजनीत चमकाने बालो ने साजिस की,सरकार पर सियासी  हमले करने बाले विपक्ष ने साजिस किया और साजिस का हिस्सा बन गया सोसल मिडिया पर झूठ को सच साबित करने बाला गिरोह।
मौत के बाद भी रोहित पर लांछनों का दौर जो चलता रहा जिससे पता चलता है की सियासत ने हमारी सोच को कितना गन्दा कर दिया है ? समझदारी जब सियासत से गायब होता है तो नतीजा कुछ ऐसा ही होने की उम्मीद की जा सकती है।
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