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Wednesday, December 30, 2015

अन्नदाता के साथ भद्दा मजाक क्यों ?

किसान देश की अर्थव्यवस्था के लिए रीढ़ माना जाता है ,देश की 70 फीसदी से ज्यादा लोग गाँव में रहते है । किसान जिनके वजह से देश की करोडो लोगों के पेट भरते है दुर्भाग्यवश वही गरीबी भुखमरी लाचारी की जिन्दगी जीने को मजबूर है । बुन्देलखण्ड के किसानो की दुर्दशा तो और भी भयावह है । फसल बर्बादी के एबज में सरकार ने बतौर मुआबजा किसीको ₹23 किसीको ₹46 किसीको ₹76 तो किसीको ₹112 का चेक दिया । ऐसे में किसान आवाज ना उठाते तो क्या करते ?
समझ में किसीको नहीं आया की यह मदद है मुआबजा है या भीख सो तमाम किसान कलेक्टर ऑफिस में सारे चेक लेकर पहुँच गए और कहा रख लो अपने रोकड़े का कटोरा ,सेफई महोत्सव में एक नाच मरते हुए किसानो के तरफ से देख लेना और लगबा लेना हमारे ओर से एक दो और ठुमका ।
सुनकर मारे शर्म के माथा झुक जाता है। बुन्देलखण्ड में राहत के नाम पर ₹23 से लेकर ₹100 तक का चेक बँटे है । अखिलेश सरकार की पीछे की नियत किसानो के लिए जख्म पर नमक के बराबर है । गरीबी का जुल्म बेबसियों के टोलियों को बर्दास्त करनी होती है।
शायद यही दुर्भाग्य रहा है , किसान कर्ज में जन्मता है कर्ज में पलता है और कर्ज में ही मर जाता है । सरकारी वायदे, इरादे सबके सब खोखला और मृगतृष्णा समान है जो सर्फ चुनाव वक्त बहुत कुछ नजर आता है और फिर उनकी सुध लेने बाले कही गम सा हो जाता है।
ये पब्लिक है अखिलेश बाबू आगे जरूर ध्यान रखेगी ।।
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