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Saturday, January 30, 2016

क्या सरकार जाती धर्म की राजनीती से आगे बढ़ेगी/ Will this government proceed with the politics of religion?

शुष्मा स्वराज जी भारतीय लोकतान्त्रिक सत्तारूढ़ दल के विदेश मंत्री जी ने आख़िरकार आज पूर्णतया जान लिया कि रोहित वरमुला दलित नहीं था जैसे की विपक्ष और तमाम लोग दलित जाती बता कर सरकार को दलित विरोधी बताने का प्रयास कर रहा था। सरकार के सारे मंत्री मात्र गैर दलित साबित करने में सारे तन्त्र लगा दिया है जो की देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण कहा जायेगा।
ऐसा लगा मानो राजनीती रूपी आत्मा प्रफुल्लित हो गई हो , सुकून मिल गया की चलो अब गैर दलित साबित कर दिया अब आगे उसी परिधि में सरकार को पाक साफ़ और आत्महत्या को साधारण मौत भी साबित कर देंगे। क्या राजनेता वर्ग और आम लोगों के भावना या दिल में फर्क होता है ? क्या नेता का मतलब पथड़ दिल या व्यापारी होता है जो सिर्फ और सिर्फ राजनीती नफा नुकसान पर काम करता है ?
क्या शुष्मा जी इतने दिनों से विश्वविद्यालय में रोहित की जाती सुनुश्चित करने के लिए गहन अध्यन में लगी थी ? वाह जी वाह फिर तो यह सामान्य जाती या बिना जाती के हुए और इस परिस्थिति में गैर दलित के मौत पर हंगामा करना या जाँच की माँग करना बनता ही नही है।
जाती धर्म के भेदभाव से तनिक ऊपर उठकर सरकार के गिरते हुए आचरण को उठाने का प्रयास करते। आत्महत्या के कारणों का पता करते, शोषण करने बाले व्यक्ति के बारे में कुछ कहते ना की शोषित और आत्महत्या करने बाले की जाती गैर दलित कहकर मामला खत्म करने की बात करते।
काश राजनीत के व्यपारी इन्हें दलित ,गैर दलित को छोड़कर देश के भावी कर्णधार विलक्षण प्रतिभावान छात्र की क्षति बताता या एक मानवता की मौत बताता तो शायद एक विशेष वर्ग बाली मानसिकता से ऊपर समझ में आता। मौत हुई है तो राजनीती गिद्ध वहाँ मंडराना स्वाभाविक है परन्तु हालात को अनुकूल कर दोषी व्यक्ति को जल्द से जल्द सजा मिले वो सरकार की जिम्मेदारी होती है ।
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